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जन्माष्टमी 2025: कृष्णजी की लीला की एक झलक

घोषणा: इस वर्ष जन्माष्टमी 16 अगस्त 2025 (शनिवार) को मनायी जाएगी।Time and DateWikipedia
पूजा का श्रेष्ठ समय (निशीथ मुहूर्त): 16 अगस्त की मध्यरात्रि 12:03–12:47 बजे, जिसका आनंद घरों में और मंदिरों में लिया जाएगा।

जन्माष्टमी 2025: कृष्णजी की लीला की एक झलक

 

"✨ मध्यरात्रि... और वह शुभ क्षण जब कृष्णजी धरती पर पधारे... जन्माष्टमी 2025 की रात्रि 12:03–12:47 बजे का निशीथ मुहूर्त आप सभी को अनंत सुख और शांति प्रदान करे...*"

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आध्यात्मिक महत्व

जनमाष्टमी पर रात की वो घड़ी, जब कृष्ण का जन्म हुआ—वही निशीथ मुहूर्त सबको आध्यात्मिक ऊँचाई पर ले जाता है। इस पल का महत्व लगभग सभी भक्तों और मंदिरों में एक समान होता है।


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जन्माष्टमी 2025 इस वर्ष 16 अगस्त, शनिवार को पूरे भारत और विश्व भर में भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाई जाएगी। यह पावन पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को, आधी रात के समय, मथुरा की कारागार में हुआ था। इस दिन भक्तजन व्रत रखते हैं, मंदिरों को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है, और रात्रि में निशीथ काल के दौरान विशेष पूजन और आरती की जाती है।

जन्माष्टमी पर मथुरा, वृंदावन और द्वारका जैसे पवित्र स्थलों में भव्य झांकियां, रासलीला और कीर्तन का आयोजन होता है। भक्तजन ‘हिंदोला’ सजाते हैं, जिसमें लड्डू गोपाल को झुलाया जाता है। दही-हांडी कार्यक्रम भी इस दिन का प्रमुख आकर्षण होता है, जिसमें युवा टोली मानव पिरामिड बनाकर मटकी फोड़ती है। यह पर्व न केवल आध्यात्मिक आनंद देता है, बल्कि हमें प्रेम, करुणा और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देता है।


 दही--हांडी जन्माष्टमी का एक रोमांचक और लोकप्रिय आयोजन है, जो विशेषकर महाराष्ट्र में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस परंपरा में ऊँचाई पर मटकी (हांडी) बांधी जाती है, जिसमें दही, मक्खन, मिश्री और अन्य मिठाइयाँ भरी जाती हैं। युवाओं की टोली, जिन्हें गोविंदा पथक कहा जाता है, मानव पिरामिड बनाकर उस मटकी को फोड़ने की कोशिश करती है। यह आयोजन भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की उस लीला का प्रतीक है, जब वे अपने दोस्तों के साथ माखन चुराने के लिए ऊँचाई पर रखी मटकी तक पहुँचते थे। दही-हांडी केवल मनोरंजन ही नहीं, बल्कि आपसी सहयोग, साहस और टीमवर्क का अद्भुत उदाहरण भी है

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जन्माष्टमी का पर्व भक्ति, उल्लास और सांस्कृतिक रंगों का संगम है, जो सभी को प्रेम और एकता का संदेश देता है। इस दिन का महत्व केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन में सत्य, करुणा और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देता है। मंदिरों की घंटियां, भजन-कीर्तन की मधुर ध्वनि और भक्तों की श्रद्धा से वातावरण पूर्णतः आध्यात्मिक हो जाता है। चाहे वह मथुरा-वृंदावन की भव्य झांकियां हों, दही-हांडी का उत्साह हो, या घर-घर में लड्डू गोपाल की पूजा—जन्माष्टमी हर दिल में भगवान कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम और आस्था का संचार करती है।